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A Dark Night ( काली रात)

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उश रात एक एक सेकंड मेरे लिए दर्दभरी सेकंड था और ऐसी रात किसी और कि जिंदगी में कभी ना आये ! में यही भगवान से प्राथना करूँगा ।

नमस्कार दोस्तों ..

मेरे जीबन की एक सच्ची घटना को लेकर आपके लिए लेकर आया हूँ । मेरा पिछले आर्टिकल को बहुत लोगों को पसंद आया था उम्मीद है ये भी पसंद आएगा । आखरी तक पढ़ना अच्छा लगे तो अपने दोस्तों को भी ये लिंक शेयर कर दीजिए।

काहानी है दिसंबर 2001 की उम्र करीब 11 साल । ये घटना मेरे घर सोलंडी,ओडिशा में हुआ था । उश बक्त मेरे परिबार में बाबा, माँ ,02 बहन, 02 भाई और में । दुःख की बात यह है कि अभी मेरा बड़ी बहन इस दुनिया में नहीं है ।

कहानी पर आते हैं, 2001 में कड़ाके की ठंड थी अभी मौसम साधारण सा हो गया है । सबसे छोटा होने के कारण माँ का लाडला था और माँ की गोद मे ही नींद आता था । हर शाम की तरह उश दिन भी परिबार में सारे सदस्य रात में खाना खाने के बाद सोने जा रहे थे । माँ घर की साफ सफाई और दरबाजा बंद करके सोने केलिए बिस्तर में आये । मेरे बायें तरफ मेरी छोटी बहन सोई थी । छोटी बहन परंतु मेरे से बड़ी है । सोने से पहले हम दोनों हल्का गरम दूध पी कर सोते थे । मगर उश दिन में जल्दी सो गया था । रात के करीब 11 से 12 के बीच होगा । मेरी छोटी बहन को भी हल्का नींद लग चुकी था । माँ दूध लेकर आये, बाकी दिनों की तरह उश दिन दूध थोड़ा गरम था । माँ बिस्तर के पास खड़ी थी अचानक छोटी बहन नींद में उठकर ओढ़ने केलिए कम्बल को खींच लिया । जिश कम्बल को मेरी छोटी बहन ने खिंचा उश कम्बल के ऊपर मेरी माँ की पेर थी । माँ की हाथ में दूध की ग्लास थी वो छूट गयी और दूध की ग्लास मेरे चेहरे के ऊपर आकर गिरा और मेरा बायां चेहरा पूरी तरह से जल गया । में जोर जोर से रोने लगा । मेरा रोना सुनते ही सब उठ गए । नींद में होते बक्त अगर कोई हमे उठा दे तो हमको कितना बुरा लगता है यह आप भी महसूस किए होंगे । परंतु उस वक्त में दर्द से चिल्ला रहा था। बह एक साधारण दर्द नहीं था, मेरे जीबन की एक ऐसा दर्द था जो कि नर्क पीड़ा से भी ज्यादा खतरनाक था ।
मेरी माँ मुझे बाहों में लेकर रोने लगी छोटी बहन भी मुझे पकड़ के रोने लगी । रात के 12 बजने बाला था मेरा रोना सुनते ही पड़ोसी भी आ गये । मेरी पीड़ा बढ़ती जा रहा था । मेरे चेहरे को जब में हाथ लगाया तब मेरे हाथ मे जला हुआ मांस भी आ रहा था । सब चिंतित थे रात में अस्पताल कैसे जाएं । गांब से अस्पताल जाने केलिए जो रास्ता था वो बहुत खराब था । रात के समय जंगली जानबर का भी डर था । ठंड भी ज्यादा था तो रात में अस्पताल जाने केलिए परेशानी हो सकती है । माँ बोली सुबह होने दो हम अस्पताल जाएंगे । पडोश के बड़े पापा वो सलाह दिए की आलू को पिश कर जले हुए जगह पर लगा दो । उसको अच्छा लगेगा और बह सो जाएगा । साथ में कुछ पैन किलर की दबाई देकर मुझे सोने केलिए बोल दिए ।

उनकी बात सुनकर में मान लिया । मगर जले हुए दर्द कम नहीं हो रहा था । दर्द 15 से 20 मिनट तक कम हुआ और बाद में फिर दर्द सुरु हो गया । रात भर दर्द के कारण रोना बंद नहीं हो रहा था कभी माँ सलाह दे रही थी और कभी छोटी बहन सलाह दे रही थी कि ” सोने की कोशिश कर, सुबह उठके मेडिकल जाएंगे ” । रात भर माँ और छोटी बहन मुझे सहला रहे थे । दर्द और आँखों से आंसू बंद नहीं हो रहा था । बीच बीच मे माँ को बोल रहा था की माँ बहुत दर्द हो रहा है । माँ की आंख में भी आशु बंद नहीं हो रही थी । बस बही शब्द आ रहा था “सो जा बाबू” “सो जा बाबु” ।
वो काली रात की दीवार में लगी घड़ी की सुई की टिक टिक आवाज़ मुझे साफ सुनाई दे रहा था । रात के 12 बजह से लेकर सुबह 05 बजह तक एक एक सेकंड को मैने गिना है । रातभर में सोच रहा था कि कब सुबह होगा ओर मुझे अस्पताल ले जाएंगे । आंसू और दर्द के सहारे रात बीत गया । सुबह 05 बजह थोड़ा नींद लगा और में सोने लगा । दूसरे दिन मुझे अस्पताल ले गए । लिखते लिखते मेरे आंखों से आसूं आ जाता है ।

03 महीने तक घर मे ही पड़ा रहा ,डॉक्टर कुछ दबाई दिए थे और उसको लगाकर घर मे रहने केलिए सलाह थी । बाहर जाने केलिए शक्त मना था । धीरे धीरे घाव ठीक होता आ रहा था और कुछ घाब बाकी था। यह घटना से पहले सुबह सुबह में और दोस्त के साथ मिलके तालाब में नहाने केलिए जाते थे मगर यह घटना के बाद मुझे घर में ही नहाना पड़ा । किसीके पता नहीं था ऐसे की मेरे दोस्तों को भी पता नहीं था मेरा ऐसा हाल हुआ है। स्कूल में मास्टर जी मेरे बारे मे पूछते थे मगर सबको यह पता था की उसका तबियत खराब है । एक दिन तालाब में नहाने केलिए सोचा, माँ पडोश में गये थे । में घर से निकल के तालाब में नहाने गया । एक चादर मेरे चेहरे पर ढक कर तालाब में पहुंचा । तालाब को देख कर में वहुत खुश हुआ । नहाने लगा, नहाते समय एक आदमी मुझे बहुत देर से घूर रहा था कि ये अपने चेहरे से चादर क्यों नहीं निकाल रहा है । वो आखरी में मुझे पूछ लिया चादर क्यों नहीं निकाल रहा है ?

मेने बोला ” कुछ नहीं ऐसे ही ” कहकर चुप रह गया । वो मुझे फिर से पूछा क्या हुआ है ? में फिर से चुप रहा मगर वो मेरे चादर को खींच लिया और मेरा चेहरा देख लिया । मेरा चेहरा देख कर जैसे उसको बिजली की झटका लगा !!! वो आश्चर्यजनक हो कर मुझे पूछा ये सब कैसे हुआ और कब हुआ ?? मेने बोला 03 महीने हो चुका है । वो मेरे चेहरे को देख कर दुःखी हो गया । और बोला बाबू तालाब की पानी से मत नहाया कर ये ठीक नहीं होगा । घर मे ही नहाया कर । तब तक मेरा नहाना हो गया था । जब घर वापस आया देखा की माँ गुस्से में थी पूछा कहाँ गया था ?? तुझे बाहर जाने केलिए कौन बोला ? बहुत डांटने लगे । माँ बोली बाहर मत जाना धूप लगेगा तो चेहरा ठीक नहीं होगा । करीब 04 से 05 महीने लग गए ठीक होने में । जब पूरी तरह से ठीक हुआ तब में स्कूल जाने लगा । अच्छा दबाई के चलते मेरे चेहरे पर एक भी जले हुए दाग नहीं रहे । मगर याद को कायम रखने केलिए एक दाग मेरे चेहरे पर रह गया । जब भी में सीसै में अपनी चेहरे को देखता हूँ उश रात की दर्द कुछ समय केलिए महसूस हो जाता है । जब याद करता हूँ घड़ी की छोटी बाली सूई की टिक टिक शब्द मेरे कानो में आज भी गूंज रही है । और ऐसी रात किसी और कि जिंदगी में कभी भी ना आये ! में यही भगवान से प्राथना करूँगा ।

मेरे लाइफ की और भी कुछ कहानी है स्टोरी सेक्शन में जाकर पढ़ सकते हैं ।

।। धन्यवाद ।।

A strong and Sad moments that never forgotten !!!

आशा करता हूँ मेरा ये कहानी आपको पसंद आएगा । कुछ जरूरी कागजात हेतु मुझे भद्रक(ओडिशा) जाना पड़ा । हालांकि में गंजाम (ओडिशा) से हूँ । काम खत्म होने वाला ही था 12.Oct. 2013 को ओडिशा में Cyclone आया और सारे कार्यालय बंद घोसित कर दिया गया । पता चला कि जिस आफिस में गया था वह सब 15 अक्टूबर के बाद खुलेगा । 12 तारीख को में भद्रक के चंदबाली जगह पर एक होटल में रुका सोचा की दूसरे दिन,13 तारीख को घर चले जाते है और 15 तक बापस आ जाऊंगा । दूसरे दिन शाम को भुबनेश्वर केलिए निकल गया । बह Bus शाम को 9 बजह पहुंचता है। रात को 10 बजह भुबनेश्वर से मेरे घर केलिए जो गाड़ी निकलती है उशी बस से घर चले जाऊंगा ।
13 तारीख शाम को 05 बजह बस भद्रक से निकली और रात को 09 बजह भुबनेश्वर पहुंचा ।भुबनेश्वर में पहुंचकर में देखा कि Cyclone की बजह से सारा सहर सुना सुना है । बिजली नहीं था । जिश Bus से आया था बो Bus स्टैंड में ना जाकर रास्ते मे यानी की भुबनेश्वर की जयदेव बिहार चौक में उतार दिया और मुझे बोले कि आप टैक्सी या ऑटो करके बस स्टैंड चले जाओ हम आगे नहीं जाएंगे । में उतर कर करीब 15 मिनट इंतज़ार के पश्च्यात एक ऑटो आया और में उसको पूछा भाई बस स्टैंड चलोगे वो बोला भाई चलेंगे परंतु आप जाओगे कहाँ ? वहां तो कोई बस नहीं है । में सोचा कि ये मजाक कर रहा हो । फिर भी में बोला की बुगुड़ा जाऊंगा । जो कि मेरे घर के नजदीकी मार्किट है । ये सुनकर बो कुछ नहीं बोला और मुझे स्टैंड में उतार दिया । स्टैंड अंदर दौड़ दौड़ के आया कहीं मेरा गाड़ी ना छूट जाये । वहां आकर देखा कि पूरा सुनसान और कोई भी गाड़ी नहीं चल रही है और ऐसे लगा कि जैसे समसान घाट बना हुआ है । में थक चुका था धीरे धीरे स्टैंड से बाहर आया और एक आदमी को पूछा कि भाई बुगुड़ा केलिए बस जो था वो नहीं आया क्या , बो बोलै कोई एक भी बस नहीं आया ना आगे गया है । और आप कहाँ जाओगे ? ये बात सुनकर में दंग रह गया । मेरे आंख से आंसू आ गया ! अभी में जाऊं कहाँ ?? उसने बोला एक काम करो पुलिस स्टेशन चले जाओ वहां रात गुजार लो और सुबह चले जाना नही तो रास्ते के किनारे पे जो बिश्राम घर है उसमें बिश्राम करलो । उनको पूछा कि “इधर कहीं खाना खाने का होटल मिलेगा क्या ? वो बोला पता नहीं बोलकर बहां से चला गया । मेरे पास 500 रुपये रहते हुए भी मुझे खाना नहीं मिल रहा था । उस समय पता चला की जब समय ख़राब चलता है उसी समय पैसे की कोई कीमत नहीं। 11 बजने वाला था में भूखा था । Cyclone की बजह से सबका नेटवर्क भी बंद था जिसको भी फोन करता हूँ स्विच ऑफ आ रहा है । बापस मैन रोड में आया कोई गाड़ी बस,ऑटो कुछ भी नहीं कहाँ जाऊं यही सोचते सोचते आगे चलने लगा । हाथ मे एक बैग था बो भी धीरे धीरे भारी होने लगा क्यों कि थोड़ा थोड़ा बारिश हो रहा था । करीब 11.35 को एक ऑटो आया बह ऑटो में सिर्फ वो लोग बैठे थे जिसको गाड़ी नहीं मिली थी और बो सब रेलवे स्टेशन में जा कर Rest करेंगे । एक मिनट केलिए में भी सोच लिया कि चलो स्टेशन चलता हूँ रात भर रह कर सुबह आ जाऊंगा । परंतु DAV School के पास मेरे मामा रहते है उनके पास जाने केलिए सोचा । DAV School के पास उतर कर ड्राइवर को बोला कि भाई मेरे पास 500 रुपये है चेंज नहीं है , ड्राइवर बोला कि कोई नहीं रहने दो जाइये रात बहुत हो गया है। में मामा के घर की और चलने लगा । मामा के घर के पास पहुंच कर देखा कि वहाँ गेट पे ताला लगा हुआ था। और फोन लगाया फोन switch off था । तबतक मेरा पूरा शरीर बारिश में भीग गया था । टेंशन बढ़ने लगा था और रोना भी आ रहा था । फिर याद आया कि पीछे की कॉलोनी में राजू Uncle रहते थे जो कि हमारे गांव के है । परंतु उनका फोन नंबर नहीं था । उनके घर के पास गया बुलाया परंतु कोई नहीं सुना सोचा कि Uncle भी सायद गांब चले गए होंगे । वापस रास्ते की और आ रहा था तभी देखा कि एक आदमी उम्र 45 करीब होगा लानटेन लगाकर कुछ पढ़ रहे थे । उनके गेट के पास गया और पूछा कि यहां पे जो राजू Uncle रहते थे वो यहां है या गांब गये है । वो बोले में सुबह उनसे मिला था रूम में पक्का होंगे । आप जाओ और जोर से आवाज़ लगाओ वो दरवाज़ा खोलेंगे । में बोला एक बार गया था मगर वो दरवाज़ा नहीं खोले । उनका कोई नंबर होगा तो उनको call करके उठा देंगे ? वो बोले कि मेरे पास उनका कोई नंबर नहीं है, आप जाओ बुलाओ वो उठ जाएंगे ।

उनकी बात सुनकर में फिर से गया और ऊंची आवाज से उनको पुकारा परंतु कोई जवाब नहीं था । समय 12.40 हो गया था , पेट की भूख बढ़ रहा था और बारिश में भीगने के कारण शरीर ठंड से कांप रहा था । उश समय मेरे परिबार की बहुत याद आ रहा था । अगर में कोशिश न करूँ तो मुझे कहीं सोने को न कहीं खाना मिलेगा । तो ये सोचकर फिर वापस वो आदमी के घर गया । वो लानटेन बंद करके दरवाज़ा बंद कर रहा था । में उनको फिर से बुलाया । वो आधा दरवाज़ा खोलकर देखके मुझे पूछा क्या हुआ ?? । में बोला Uncle जी को बहुत बार बुलाया परंन्तु कुछ जबाब नहीं दे रहे है । बो आदमी बोला की में क्या करूँ ? मैंने बोला कुछ मदद करेंगे तो ??(मेरा कहने का मतलब था कि वो अगर Uncle को बुलाएंगे तो काश वो जाग जाते) इतना सुनके बो बोले “उधर जाओ उनको फिर से बुलाओ ” कहकर दरवाज़ा बंद कर दिया । बारिश में भीगने के कारण ठंड लग चुका था और कहीं चलके जाने का हिम्मत नहीं था । रात के करीब 01.30 बजह फिर वापस रास्ते मे आया रास्ते के किनारे बारिश में भीगते हुए कुछ देर बैठा और , आंखों में आँसू और पेट मे भूख बहुत दर्द दे रहा था । घर की याद आ रहा था और सोच रहा था अगर न आया होता तो ये सब न होता । रात के 02.00 बजह फिर Uncle के घर के बाहर गया और फिर जोर जोर से चिल्लाने लगा , रोते हुए भी चिल्लाता रहा । कुछ देर के बाद पड़ोसी के एक आदमी उठ गया और पूछा क्या हुआ भाई ? में बोला की Uncle दरवाज़ा नहीं खोल रहें हैं । वो भी बहुत बार बुलाये , कुछ देर के बाद Uncle दरबाजा खोले और घर के अंदर गया । Uncle को सारी बात बताया और वो मुझे सत्तू बनाके दिए और बिस्कुट खा कर Rest किया। दूसरे दिन फिर भद्रक केलिए बापस निकल पड़ा ।15 तारीख के बाद सरकारी काम खत्म करके बापस अपने यूनिट केलिए रबाना हुए ।
कहानी को जब याद करता हूँ आंख से आंसू आ जाता है । कहानी कैसा लगा Comment करें |