ऐसा ही होता है

फिर भी,

मुस्कान और आंसू हैं।

कभी अपना रूप खोता है,

चाहे उम्मीदों की आँधी में हो या सपनों के ज्वार में

बरकरार बरकरार रहता है

अवसाद के विकृत रूप,

जब से समुद्र भी रोता है।

आसमान छूने के लिए,

और धुंधली यादें उभर आती हैं

आंसुओं के ठंडे स्पर्श में…

मेरे नंगे दिल की हर लहर

सपनों की यादें कितनी सुनहरी होती हैं

विडम्बना यह है की

चारों ओर मेरा

कष्टदायी दर्द और अन्य दर्द

उठता रहता है

निर्वाण किस समय बिदाई लेगा

पागलपन की आवाज इतनी कोमल है कि खून भी बहने लगा ।

Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *