समस्या को कैसे निपटा जाए ???

 

समस्या को कैसे निपटा जाए ???


मन में श्रद्धा तब पैदा होती है जब कोई मंदिर या मस्जिद दिख जाता है। 

क्या हम सच में इतना व्यस्त हो गए हैं की श्रद्धा केलिए हमारे पास समय नहीं है ।

जैसे हम कोई आर्टिकल पढ़ने से पहले यह देख लेते हैं की कितना लंबा है और कितना समय लगेगा । 

असल में हम अपना समय को छोटी से छोटी इकाई में परिवर्तन करने में लगे हैं ।

यहां से साफ जाहिर होता है की हम हमारा समय को व्यर्थ नहीं करना चाहते हैं मगर बही करते रहते हैं। 

लास्ट तक इस आर्टिकल को पढ़ें कुछ अच्छा ज्ञान और कथा मिल जाए ।

तो चलें….

व्यस्त ही जिंदगी का मूलमंत्र है, व्यस्त रहना अनिवार्य है ।

मगर ज्यादा व्यस्त रहेंगे तो हमारे जीवन में असंतुलन पैदा होगा।

गलत चीजों का आदि बनेंगे ।

लोग तो गुमराह कर रहें है ।

विकल्प नहीं बचेगा और आखरी में गलत का साथ देने लगते हैं ।

क्या हमारे पास ऐसा कोई रास्ता नहीं जो हमको इस बेकार पल से बाहर खींच ले आए ।

क्या हर जगह ठोकर खा कर जीना होगा हमको ?

कितने सवाल, कितने जवाब , मन में कितने सपने , कितने खयाल, क्या सारे सवाल का एक उपाय नहीं हो सकता ?

हां

अगर हम चाहे तो यह संभव है ।

खुदको बदलना सीखो ।

दूसरे के ऊपर आशाएं मत बनो।

आप खुद किस चीज को संभल सकते हो ।

उसको ढूंढो

उसे पाने की कोशिश करो ।

जीवन में संघर्ष कभी खतम नहीं होगा ।

मगर कुछ सपने तो पूरा हमारे द्वारा पूरा हो सकता है ?

उसने ये किया, मुझे भी यह करना है !!

उसके पास यह चीज है, मेरे पास वह नहीं है !!

मुझे उस चीज को हासिल करना है !!

यह सारे बातों का हल आप खुद सुलझा सकते हो ।

कैसे और क्यों 

यह सवाल करने का वक्त नहीं 

सवाल करोगे तो जवाब मिलने केलिए आपको इंतजार करना पड़ेगा ।

जितना जल्दी हो सके तो समाधान का रास्ता ढूंढो ।

हां मेरे पास भी है उसका जवाब और सही रास्ता भी है ।

अगर उस राह को फॉलो करो तो

कैसे इसका जवाब आपको में जरूर बताऊंगा 

उस से पहले आप अगर समझदार हो तोह आपके लिए समस्या कुछ भी नहीं ।

फिर भी आप चिंतन में अपना समय बिता रहे हो ।
तो मेरे तरफ से बिनती है । ऐसा ना करें ।

चिंतन सोच में जितना समय खपत करोगे , नुकसान ही होगा ।

चिंतन में लोग , नशा और दारू का सेवन करते हैं ।

और 100 से 1000 और उस से अधिक का भी खर्चा करने केलिए हम पीछे नहीं हटते ।

कारण एक ही है इस समस्या को नशे में डूब कर सब कुछ भूल जाना चाहते हैं।

असल में होता क्या है ? समस्या कुछ पल केलिए मन से चला जाता है, मगर दूसरे दिन जैसे की तैसे ।

खर्चा हुआ 1000 मगर समाधान कुछ भी नहीं ।

हां पैसे की कदर इसलिए कर रहा हूं की यह 1000 रुपए आपको आपकी जरूरत के समय बहुत काम आने वाला है । 
थोड़ा सोच कर देखें ।

हां अगर 1000 की जगह कुछ कम रुपए में अच्छे ज्ञान का राह मिल जाए तो कैसा रहेगा ? और उसको जरूर कीजिए। 

क्यों की आज कल भगवान की दर्शन केलिए 100,200,300 की टिकट भी लेनी पड़ती है तो अच्छे ज्ञान केलिए 100,200 कोई फर्क नहीं पड़ता होगा ।

तो सारे सवाल जवाब आपको एक ही जगह मिलने की आशा रखते है ना ??

में आशा रखता हूं की, एक अच्छे परिवर्तन ला देगा आपके जीवन में ।

क्या आप इसका प्रयोग करना चाहोगे ??

तो बिना देर किए, मेरे द्वारा लिखित ” अपने अंदर कैसे वदलाब लाएं” पुस्तक में सिर्फ मधुर कथाएं लिखी गई है ।

आज की रुपए के मुकाबले यह कुछ भी नहीं है मगर आपकी सोच में बदलाव लाने केलिए शत प्रतिशत कारगर साबित होगा ।

अपनी समय को नष्ट ना करे अभी मंगवाएं । नीचे दिए गए अमेजन और फ्लिपकार्ट के लिंक में जा कर अभी ऑर्डर करें ।

मेरा दावा है, पढ़ने के पश्चात काफी समस्याओं का समाधान आपको जरूर मिल जायेगा ।

इस पुस्तक केबल मध्यम वर्ग केलिए नहीं है यह अपने बच्चे केलिए भी मंगा सकते हो । 

अगर बह भी गलत चीजों का आदि बन गया है और उनके मन में अगर असंतुलन दिख रहा है । 

तो देर ना करें । साधन आपके पास है ।जल्दी निपटाने की कोशिश करें ।


जब समस्या आता है लोग तब निवारण केलिए रास्ता ढूंढते हैं । अगर आप समस्या में हो तो आगे ऐसे बहुत सारे समस्या आपके परिवार में भी आते रहेंगे , समाधान का रास्ता कुछ ना कुछ होना चाहिए ना ??

तो अभी ऑर्डर करें निम्न में दिए गए लिंक से….





धन्यवाद 






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ମଶାଣି ର ଫୁଲ

 





ମଶାଣି ର ଫୁଲ


ମଶାଣି ର ନାମ ସୁଣିଲେ 
ମନ ରେ ଲାଗେ ଭୟ…

କିନ୍ତୁ ମଶାଣି ହିଁ ଆମ ଶେଷ ଠିକଣା
ଏବଂ ମଶାଣି ଆମ ପରିଚୟ…

କେତେ ଲୋକ ଆସି ଗଲେଣି 
ଏହି ମଶାଣି ଭୂମି କୁ
ମୁକ୍ତ ରେ ମିଳୁଛି ଦୁଇ ଗଜ ଜମି..

ସମସ୍ତଙ୍କ ପାଇ ସାଇତି ଅଛି ଏଠି
ଏବଂ କାହାର ହେବନି କମି…

କିଏ କାହାଟି କରିବା ନାହି 
ଜାଗା ପାଇଁ ପାଟିତୁଣ୍ଡ…

ନିଜ ନିଜ ଘରୁ ବାହାରି ଦେଖାଅ 
ଉଠାଇ ନିଜ ନିଜର ମୁଣ୍ଡ…

କାହା ଘର ମାଟି ପାଉଁଶ ଉପରେ
ତ କାହା ଘର ମାଟି ତଳେ
ଦରକାର ନାହି ଗହଣା ସୁନା ଏଠି
ନା ଦରକାର ଘୋଡା ଗାଡି…

ନା ଟଙ୍କା ର ଅଭାବ ଏଠି
ନା ଖାଦ୍ୟ ପାନୀୟ
ନା ଲୁଗାପଟା ଶାଢ଼ୀ…

ନା ସ୍ବର୍ଗ, ନା ନର୍କ, ନା ପାପ ପୂର୍ଣ୍ୟ ର ଡର
ନା ଜାତି, ନା ନିତି, ନା ତିଥି 
ନା ଆସେ ଏଠି କାହାକୁ ଜ୍ଵର
ଏହା ହି ସ୍ବର୍ଗ ର ଦ୍ବାର
ନା କିଏ ଏଠି ଆପଣାର ନା କିଏ ଏଠି ପର…

ମୁତ୍ୟୁ ହିଁ ସତ୍ୟ ଏଠି
ମାଟି ପାଣି ପବନ ନିଆଁ 
ଆମର ଶରିର ର ମୁଲ କିଛି ନାହିଁ ଏଠି
କାରଣ ଆମେ ସମସ୍ତେ ଗୋଟିଏ  
ମଶାଣି ର ଫୁଲ ପରା…


ହୃଷିକେଶ କୁଶୁଲିଆ
ମୁନିଗୁଡ଼ା, ରାୟଗଡ଼ା ।


 ହୃଷିକେଶ ଙ୍କ ଅନ୍ୟ କିଛି କବିତା ଗୁଡିକ ପଢନ୍ତୁ

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